माँ महागौरी स्वरूप एवं पौरिणीक महात्म्
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बर धरा
शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
माँ दुर्गा का अष्टम रूप महागौरी हैं। महागौरी की चार भुजाएं हैं उनकी दायीं भुजा अभय मुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में त्रिशूल शोभता है। बायीं भुजा में डमरू डम डम बज रही है और नीचे वाली भुजा से देवी गौरी भक्तों की प्रार्थना सुनकर वरदान देती हैं। जो स्त्री इस देवी की पूजा भक्ति भाव सहित करती हैं उनके सुहाग की रक्षा देवी स्वयं करती हैं। कुंवारी लड़की मां की पूजा करती हैं तो उसे योग्य पति प्राप्त होता है। पुरूष जो देवी गौरी की पूजा करते हैं उनका जीवन सुखमय रहता है देवी उनके पापों को जला देती हैं और शुद्ध अंत:करण देती हैं। मां अपने भक्तों को अक्षय आनंद और तेज प्रदान करती हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं। नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन किया जाता है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। माँ महागौरी की आराधना से किसी प्रकार के रूप और मनोवांछित फल प्राप्त किया जा सकता है। उजले वस्त्र धारण किये हुए महादेव को आनंद देवे वाली शुद्धता मूर्ती देवी महागौरी मंगलदायिनी हों।
इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कून्द के फूल की गयी है। इनकी आयु आठ वर्ष बतायी गई है। इनका दाहिना ऊपरी हाथ में अभय मुद्रा में और निचले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। बांये ऊपर वाले हाथ में डमरू और बांया नीचे वाला हाथ वर की शान्त मुद्रा में है। पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। इन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि व्रियेअहं वरदं शम्भुं नान्यं देवं महेश्वरात्। गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार इन्होंने शिव के वरण के लिए कठोर तपस्या का संकल्प लिया था जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब शिव जी ने इनके शरीर को पवित्र गंगाजल से मलकर धोया तब वह विद्युत के समान अत्यन्त कांतिमान गौर हो गया, तभी से इनका नाम गौरी पड़ा।
महागौरी आदी शक्ति हैं इनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाश-मान होता है इनकी शक्ति अमोघ फलदायिनी हैम माँ महागौरी की अराधना से भक्तों को सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा देवी का भक्त जीवन में पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी बनता है।
दुर्गा सप्तशती में शुभ निशुम्भ से पराजित होकर गंगा के तट पर जिस देवी की प्रार्थना देवतागण कर रहे थे वह महागौरी हैं। देवी गौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ जिसने शुम्भ निशुम्भ के प्रकोप से देवताओं को मुक्त कराया। यह देवी गौरी शिव की पत्नी हैं यही शिवा और शाम्भवी के नाम से भी पूजित होती हैं।
माँ महागौरी पूजा विधि
नवरात्रे के दसों दिन कुवारी कन्या भोजन कराने का विधान है परंतु अष्टमी के दिन का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। देवी गौरी की पूजा का विधान भी पूर्ववत है अर्थात जिस प्रकार सप्तमी तिथि तक आपने मां की पूजा की है उसी प्रकार अष्टमी के दिन भी देवी की पंचोपचार सहित पूजा करें। देवी का ध्यान करने के लिए दोनों हाथ जोड़कर इस मंत्र का उच्चारण करें।
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यामाना सदा भूयात
सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं।देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं
माँ महागौरी के मंत्र
०१- श्वेते वृषे समरूढा
श्वेताम्बराधरा शुचिः।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
०२- या देवी सर्वभूतेषु
माँ गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमो नम:।।
माँ महागौरी ध्यान
वन्दे वांछित कामार्थे
चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी
यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी
सोमचक्रस्थितां अष्टमं
महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल
डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या
नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी
रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां
कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल
चंदनगंधलिप्ताम्॥
माँ महागौरी स्तोत्र पाठ
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि
धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी
महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन
धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या
महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि
तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी
प्रणमाम्यहम्॥
माँ महागौरी कवच
ओंकारः पातु शीर्षो मां,
हीं बीजं मां, हृदयो।
क्लीं बीजं सदापातु
नभो गृहो च पादयो॥
ललाटं कर्णो हुं बीजं पातु
महागौरी मां नेत्रं घ्राणो।
कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा
मा सर्ववदनो॥
माँ महागौरी की कथा
देवी पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी, एक बार भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को देखकर कुछ कह देते हैं। जिससे देवी के मन का आहत होता है और पार्वती जी तपस्या में लीन हो जाती हैं। इस प्रकार वषों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आती तो पार्वती को खोजते हुए भगवान शिव उनके पास पहुँचते हैं वहां पहुंचे तो वहां पार्वती को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं। पार्वती जी का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं।
एक कथा अनुसार भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी जी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है इसके जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है, और माँ उसे अपना सवारी बना लेती हैं क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।
देवी महागौरी का ध्यान, स्रोत पाठ और कवच का पाठ करने से ‘सोमचक्र’ जाग्रत होता है जिससे संकट से मुक्ति मिलती है और धन, सम्पत्ति और श्री की वृध्दि होती है। इनका वाहन वृषभ है।
दुर्भाग्य नाशक उपाय
०१- महागौरी के स्वरूप को दूध से भरी कटोरी में विराजित कर चांदी का सिक्का चढ़ाएं। फिर सिक्के को धोकर हमेशा अपनी जेब में रखें इससे धन संबंधित संमस्या में कमी आएगी।
०२- पानी वाले नारियल को सिर से ११ बार घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित करने से मनचाही इच्छाएं पूरी होंगी।
०३- पीपल के ग्यारह पत्ते लें। उन पर राम नाम लिखें पत्तों की माला बनाकर हनुमानजी को पहना दें। इससे सभी प्रकार की परेशानियां दूर होती हैं।
०४- किसी एक खाली या शांत कमरे में उत्तर की दिशा की ओर अपना मुंह करके पीले आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने तेल के ०९ दीपक जलाएं और ये साधनाकाल तक जलते रहने चाहिए। इन ०९ दीपकों के सामने लाल चावल की एक ढेरी बनाकर उस पर एक श्रीयंत्र रख लें। इस श्रीयंत्र का कुंकुम, फूल, धूप, तथा दीप से पूजन करें। इस पूरी क्रिया के बाद एक प्लेट पर स्वस्तिक बनाकर उसका पूजन करें। अब इस श्रीयंत्र को अपने घर के पूजा स्थल में स्थापित कर दें तथा शेष सामग्री को नदी में प्रवाहित कर दें। इस प्रयोग से आपको जल्दी ही अचानक धन लाभ होगा।
०५- दुर्गाष्टमी हवन के साथ मंत्र को पढ़ते हुए १०८ बार अग्नि में घी से आहुतियां दें। इससे यह मंत्र सिद्ध हो जाएगा। इसके बाद रोजाना नित्य सुबह उठकर पूजा के समय इस मंत्र का २१ बार जप अवश्य करें। यदि संभव हो तो अपने परिवारजन से भी इस मंत्र का जप करने के लिए कहें। इससे जीवन भर परिवार में मधुर संबंध बने रहेंगे।
०६- यदि आपका विवाह न हो रहा हो या आपके परिवार में किसी का विवाह विलम्ब से हो रहा हो या आपके वैवाहिक जीवन में तनाव है तो यह उपाय बहुत लाभदाय होगा। यह उपाय किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को या नवरात्र की अष्टमी को रात्रि १० बजे से १२ बजे के बीच में शरु करना चाहिए और नियमित ४३ दिन तक करें। अपने सोने वाले कमरे में एक चौकी बिछा तांबे का पात्र रख उसमें जल भर दें। पात्र के अंदर आठ लौंग, आठ हल्दी, आठ साबुत सुपारी, आठ छुआरे, इन सारे सामान को डाल दें। आम के पांच पत्ते दबा कर जटा वाला नारियल पात्र के ऊपर रख दें। वहीं आसन बिछा कर घी का दीपक जलाएं, श्रद्धापूर्वक धूप-दीप अक्षत पुष्प और नैवेद्य अपिर्त करने के उपरांत पांच माला माँ गौरी के मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।
ॐ महागौरी देव्यै नम:
की और एक माला शनि पत्नी नाम स्तुति की करें और रात्रि भूमि शयन करें। प्रात: काल मौन रहते हुए यह सारी सामग्री किसी जलाशय या बहते हुए पानी में प्रवाह कर दें। वैवाहिक समस्याओं का निवारण हो जाएगा।
मंत्र
सब नर करहिं परस्पर प्रीति।
चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।।
०७- अष्टमी पूजन के साथ नीचे दिए गए हुए मंत्र का ११ माला जप करें। जप के पश्चात माता पार्वती एवं भगवान शिव से विवाह में आ रही बाधाओं को दूर करने की प्रार्थना करें। इस मंत्र के प्रभाव से जल्दी ही विवाह के आसार बन जाते हैं।
मंत्र
ऊँ शं शंकराय सकल-जन्मार्जित-पाप-विध्वंसनाय, पुरुषार्थ-चतुष्टय-लाभाय च
पतिं मे देहि कुरु कुरु स्वाहा।।
माँ महागौरी आरती
नवरात्रि में विशेष है
महागौरी का ध्यान।
शिव की शक्ति देती हो
अष्टमी को वरदान॥
मन अपना एकाग्र कर
नन्दीश्वर को पाया।
सुबह शाम के दूप से
काली हो गई काया॥
गंगा जल की धार से
शिव स्नान कराया।
देख पति के प्रेम को
मन का कमल खिलाया॥
बैल सवारी जब करे
शिवजी रहते साथ।
अर्धनारीश्वर रूप में
आशीर्वाद का हाथ॥
सर्व कला सम्पूरण माँ
साधना करो सफल।
भूलूं कभी ना आपको
याद रखूं पल पल॥
जय माँ महागौरी।
जय जय महागौरी॥
माँ दुर्गा की आरती
जय अंबे गौरी, मैया
जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ ॐ जय…
मांग सिंदूर विराजत,
टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना,
चंद्रवदन नीको ॥ ॐ जय…
कनक समान कलेवर,
रक्तांबर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला,
कंठन पर साजै ॥ ॐ जय…
केहरि वाहन राजत,
खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत,
तिनके दुखहारी ॥ ॐ जय…
कानन कुण्डल शोभित,
नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर,
राजत सम ज्योती ॥ ॐ जय…
शुंभ-निशुंभ बिदारे,
महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना,
निशदिन मदमाती ॥ॐ जय…
चण्ड-मुण्ड संहारे,
शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे,
सुर भय दूर करे ॥ॐ जय…
ब्रह्माणी, रूद्राणी,
तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी,
तुम शिव पटरानी ॥ॐ जय…
चौंसठ योगिनी गावत,
नृत्य करत भैंरू ।
बाजत ताल मृदंगा,
अरू बाजत डमरू ॥ॐ जय…
तुम ही जग की माता,
तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दुख हरता,
सुख संपति करता ॥ॐ जय…
भुजा चार अति शोभित,
वरमुद्रा धारी ।
मनवांछित फल पावत,
सेवत नर नारी ॥ॐ जय…
कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत,
कोटि रतन ज्योती ॥ॐ जय…
श्री अंबेजी की आरति,
जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी,
सुख-संपति पावे ॥ॐ जय…
।।इति शुभम्।।
आचार्य स्वामी विवेकानन्द जी
श्री धाम श्रीअयोध्या जी
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