सम्पादकीय

‘वे मुजरा रोकने आए, सिक्कों की खनक सुनी तो, खुद ही नाचने लगे

परावर्तन निदेशालय ने दिल्ली के मुख्यमन्त्री श्री अरविन्द केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया। संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा की सरकार के दस सालों में हुए भ्रष्टाचार के विरुद्ध ‘इण्डिया अगेंस्ट क्रप्शन’ आन्दोलन से निकल कर सत्ता की सीढिय़ां चढ़ रहे केजरीवाल का नाम जिस तरह दिल्ली के बहुकरोड़ी आबकारी घोटाले से जुड़ा, उससे एक शेयर याद आ गया –
‘वे मुजरा रोकने आए,
सिक्कों की खनक सुनी तो,
खुद ही नाचने लगे।’
केजरीवाल के रूप में गान्धीवादी नेता श्री अन्ना हजारे के आन्दोलन की परिणति ऐसी होगी, शायद ही किसी ने सोचा हो। बताया जा रहा है कि 17 नवम्बर, 2021 को दिल्ली सरकार ने राज्य में नई शराब नीति लागू की। इसके तहत 32 अंचल बनाए गए और हर अंचल में अधिक से अधिक 27 दुकानें खुलनी थीं। नई नीति में दिल्ली की सभी शराब की दुकानों को निजी कर दिया गया। इसके पहले 60 प्रतिशत दुकानें सरकारी और 40 प्रतिशत निजी थीं। सरकार ने तर्क दिया कि इससे 3,500 करोड़ रुपये का लाभ होगा। जुलाई 2022 में मुख्य सचिव ने आबकारी नीति में अनियमितता होने के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट दिल्ली के उप-राज्यपाल को सौंपी। इसमें नीति में गड़बड़ी होने के साथ ही तत्कालीन उप-मुख्यमंत्री श्री मनीष सिसोदिया पर शराब कारोबारियों को अनुचित लाभ पहुंचाने का आरोप लगा। रिपोर्ट के आधार पर उप-राज्यपाल ने नई आबकारी नीति के क्रियान्वयन में नियमों के उल्लंघन और प्रक्रियात्मक खामियों का हवाला देकर केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जांच की सिफारिश की। इस पर सीबीआई ने सिसोदिया समेत 15 के खिलाफ केस दर्ज किया। इसी आधार पर परावर्तन निदेशालय ने धनशोधन (मनी लॉण्ड्रिंग) का मामला दर्ज किया। आरोप है कि आबकारी नीति को संशोधित करते समय लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ दिया गया। इसमें लाइसेंस शुल्क माफ या कम किया गया। इस नीति से सरकारी खजाने को 144.36 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। मामले में जांच की सिफारिश करने के बाद 30 जुलाई को दिल्ली सरकार ने आबकारी नीति वापस लेते हुए पुरानी व्यवस्था बहाल कर दी। पूरे मामले की जांच के दौरान पैसों के हुए लेन-देन की फेरहिस्त में श्री केजरीवाल का भी नाम आया और प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इससे पहले केजरीवाल के सहयोगी श्री मनीष सिसोदिया व सांसद श्री संजय सिंह सहित लगभग डेढ़ दर्जन आरोपियों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
इस प्रकरण में श्री केजरीवाल कितने दोषी हैं और कितने निर्दोष इसका निर्णय तो अब न्यायालय ने करना है परन्तु पूरे प्रकरण में उन्होंने जैसी अपरिपक्वता का परिचय दिया वह आश्चर्यजनक है। आदर्श स्थिति तो यह है कि सार्वजनिक जीवन में किसी पर कोई आक्षेप न लगे परन्तु वर्तमान के गलाकाट राजनीतिक दौर के चलते शायद ही यह सम्भव हो कि किसी नेता पर कोई गम्भीर आरोप न लगे हों। गुजरात दंगों को लेकर वहां के मुख्यमन्त्री रहते हुए वर्तमान प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी पर कितनी गम्भीर तोहमतें मढञी गईं, उन्हें किन-किन जांच एजेंसियों के सामने पेश होना पड़ा यह सभी जानते हैं। इसी तरह लश्कर-ए-तैयबा की आतंकी इशरत जहां की मुठभेड़ में हुई मौत के चलते वर्तमान गृहमन्त्री श्री अमित शाह, जो उस समय गुजरात के गृहमन्त्री थे को भी अनेक गम्भीर आरोपों का सामना करना पड़ा पर इन नेताओं ने ‘दैन्यं न पलायनं’ के सिद्धान्त को नहीं छोड़ा। हर जांच व हर आरोप का मजबूती के साथ सामना किया और अन्तत: विजयी हो कर निकले। इसके विपरीत श्री केजरीवाल पहले तो अपने पर लगे आरोपों को लेकर उपहास की मुद्रा में आए और उसके बाद राजनीतिक उछलकूद करते दिखे। परावर्तन निदेशालय के समनों का सम्मान करने की बजाय वह कभी तो विपसना करने चले जाते कभी चुनावी दौरों पर। केवल इतना ही नहीं वे इन समनों की वैधानिकता पर सवाल उठाते और इनके खिलाफ टीवी चर्चाओं के प्रवक्ताओं की तरह पूरे मामले पर तर्क-कुतर्क करते दिखे। अगर इस तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद वे अपने पद से त्यागपत्र दे कर जांच का सामना करते और यह कहने का साहस दिखाते कि निर्दोष साबित होने तक कोई पद ग्रहण नहीं करूंगा, तो यह आपदा ही उनके लिए अवसर बन जाती। उनकी सार्वजनिक स्वीकार्यर्ता और राजनीतिक कद और बढ़ते परन्तु केजरीवाल मौका चूक गए।
देश के राजनीतिक इतिहास में ही ऐसी उदाहरणों की कमी नहीं है जहां किसी नेता पर गलत आरोप लगाए गए हों और इन आरोपों से उक्त नेता का चरित्र और भी ध्वलित हो कर सामने आया हो। याद करें कि पिछले नब्बे के दशक में तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष श्री लालकृष्ण आडवाणी का नाम हवाला काण्ड में घसीटा गया और उन पर 20 लाख रुपये लेने के आरोप लगे। इस पर श्री आडवाणी ने घोषणा की कि वे निर्दोष साबित होने तक कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे और न ही कोई पद ग्रहण करेंगे। इतिहास साक्षी है कि उन पर लगे सभी आरोप असत्य साबित हुए और उनकी चारित्रिक छवि और भी उज्जवल हो कर देश के सामने आई। परन्तु केजरीवाल व उनके साथियों ने जिस तरह से उनकी गिरफ्तारी को लेकर जिस तरह की ब्यानबाजी की उससे लगने लगा कि कोई और दिल्ली के मुख्यमंत्री को दोषी मानें या न मानें परन्तु ब्यानवीर तो उन्हें कसूरवार मान कर ही चल रहे हैं। केजरीवाल को अगर राजनीति में लम्बी पारी खेलनी है तो उन्हें न केवल एजेंसी की जांच में सहयोग करना चाहिए बल्कि सच्चाई को सामने लाने में सरकार की मदद करनी चाहिये।

राकेश सैन
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)