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कला और संस्कृति के संरक्षण तथा विकास में जीकेसी का कला-संस्कृति प्रकोष्ठ प्रतिबद्ध : देव कुमार लाल

पटना, 23 जून ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस (जीकेसी) कला-संस्कृति प्रकोष्ठ और श्रुति इंस्टीच्यूट ऑफ परफार्मिग आर्ट के सौजन्य से कथक कार्यशाला ऋदम का आयोजन किया गया।

ग्लोबल कायस्थ कॉन्फ्रेंस और श्रुति इंस्टीच्यूट ऑफ परफार्मिग आर्ट के सौजन्य से कथक कार्यशाला ऋदम का आयोजन अंतराष्ट्रीय कथक नत्यांगना श्रुति सिन्हा ने जीकेसी के सौजन्य से कथक कार्यशाला ऋदम का किया आयोजन भारत की कला-संस्कृति की विश्व भर में अनूठी पहचान : राजीव रंजन प्रसाद

कथक कार्यशाला ऋदम में मुख्य अतिथि के तौर पर जीकेसी के ग्लोबल अध्यक्ष राजीव रंजन प्रसाद ने शिरकत की।सत्र का संचालन आनंद सिन्हा ग्लोबल अध्यक्ष डिजिटल एवं टेक्नोलॉजी प्रकोष्ठ, ने किया। सत्र को जीकेसी कला-संस्कृति प्रकोष्ठ की राष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमती श्रुति सिन्हा ने संबोधित किया, जो प्रतिष्ठित कथक नृत्यांगना हैं। कथक की कार्यशाला में श्रुति सिन्हा ने कथक नृत्य के महत्व को बताते हुए नमस्कार, तत्कार, लय, मुद्रा, कवित्त और गुरु वंदना सिखाया। कथक नृत्य.किस प्रकार से योग से जुड़ा हुआ है,एवं हमारे जीवन में कला का क्या महत्व है ,इस बारे में बताया गया। श्रुति सिन्हा यह भी बताया कि पूरे विश्व में भारत क्यों कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में अग्रणी है।

श्रुति सिन्हा ने कथक के महत्व को बताते हुए यह बताया कि किस तरह यह आपके जीवन में सकारात्मक सोच लाती है, यह आपका ध्यान केंद्रित करती है न भटकाती है। वह यह भी बताती है कला एक साधना है और इसमे पारंगत होने के लिए एक जीवन भी इसके लिए कम है।

प्रसाद ने कहा कि हमारे देश की कला और संस्कृति अन्य सभी देशों से भिन्न औ अनूठी पहचान लिये हुए है।हम भाग्यशाली हैं कि हमने भारत जैसे देश में जन्म लिया है जहां की कला-संस्कृति समूचे विश्व को आकृष्ट करती रही है। सदियों से हमारा सांस्कृतिक वैभव हमे गौरवान्वित होने का अवसर प्रदान करता रहा है। श्रुति इंस्टीच्यूट ऑफ परफार्मिग आर्ट के सौजन्य से कथक कार्यशाला ऋदम का आयोजन किया जाना निःसंदेह सराहनीय एव प्रशंसनीय है। इस पहल के लिए श्रीमती श्रुति सिन्हा और उनकी संस्था को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं

श्रीमती श्रुति सिन्हा ने कहा कथक शब्‍द की उत्‍पत्ति कथा शब्‍द से हुई है, जिसका अर्थ एक कहानी से है।कथन को ज्‍यादा प्रभावशाली बनाने के लिए इसमें स्‍वांग और मुद्राएं कदाचित बाद में जोड़ी गईं । इस प्रकार वर्णनात्मक नृत्‍य के एक सरल रूप का विकास हुआ और यह हमें आज कथक के रूप में दिखाई देने वाले इस नृत्‍य के विकास के कारणों को भी उपलब्‍ध कराता है। उन्होंने कहा भारतीय कला-संस्कृति के गौरवशाली इतिहास को अक्षुण्ण रखने के लिए जीकेसी और उनकी संस्था श्रुति इंस्टीच्यूट ऑफ परफार्मिग आर्ट.पूरी तरह समर्पित होकर कार्य कर रही है। भविष्य में इस जागरूकता अभियान से ज्यादा से ज्यादा लोग जुड़े और इस उद्देश्य को पूरा करने का संकल्प करें, यह हमारी कामना है। आगामी सत्र की घोषणा शीघ्र हीं की जाएगी जो कला.और संस्कृति के विभिन्न आयाम से संबंधित होगी।

श्री देव कुमार लाल (राष्ट्रीय अध्यक्ष, कला संस्कृति प्रकोष्ठ,जीकेसी) ने कहा कि किसी भी राष्ट्र की पहचान के पहलूओं मे उसकी संस्कृति भी महत्वपूर्ण होती है।हमारे देश की असली पहचान उसकी विविध कला-संस्कृति से है। जीकेसी का कला-संस्कृति प्रकोष्ठ कला और संस्कृति के संरक्षण तथा विकास में अहम भूमिका निभाता रहा है। भविष्य में ऐसे शैक्षणिक सत्र के आयोजन से समाज को सुदृढ़ सांस्कृतिक आयाम मिलेगा। इस.प्रारंभ के लिए श्रुति सिन्हा जी को शुभकानाएं एवं बधाई।

गौरतलब है कि पंडित मुन्ना लाल शुक्ला (कथक सम्राट प० बिरजू महाराज के भांजे) की शिष्या, दिल्ली कथक केंद्र से प्रशिक्षित एवं अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नृत्यांगना श्रुति सिन्हा (निर्देशिका, सिपा SIPA) कथक की कार्यशाला ले रही हैं। श्रुति सिन्हा बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं, वह तबला, पखावज, गायन,योग के साथ नई दिल्ली दूरदर्शन की ग्रेडेड कलाकार हैं।SIPA बच्चों को कथक सिखाने के साथ गंधर्व महाविद्यालय से डिग्री भी प्रदान करती है। इस कोविड काल के दौरान बच्चों में कथक के द्वारा सकारात्मक सोच एवम प्रोत्साहन और नई ऊर्जा का संचार करती रहती है। कला के क्षेत्र में नए प्रयोग करती रहती हैं।