राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति 2018 में संशोधन को मंजूरी, जानिए इससे क्या होगा लाभ
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति 2018 में संशोधन को मंजूरी दे दी है। इस मंजूरी के साथ ही पेट्रोल में 20% एथेनॉल के मिश्रण के लक्ष्य को साल 2025-26 में ही प्राप्त करने के लिए प्रयास किया जायेगा। इससे पहले साल 2018 में राष्ट्रीय जैव-ईंधन नीति को पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया गया था।
क्या है जैव ईंधन?
जैव ईंधन नवीकरणीय बायोमास संसाधनों और अपशिष्ट पदार्थों जैसे प्लास्टिक, नगरपालिका ठोस, अपशिष्ट गैसों से प्राप्त उर्जा है। जैव-ईंधन तेल आयात पर निर्भरता और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के साथ ही किसानों को अतिरिक्त आय प्रदान करने एंव ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने में सहायक होता है।
आर्थिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण जैव-ईंधन
भारत में इथेनॉल उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाने वाला प्रमुख कच्चा माल गन्ना और इसके उप-उत्पाद हैं जो ‘इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम’ (Ethanol Blending Programme- EBP) के तहत 90% तेल उत्पादन के लिये उत्तरदायी है। यह कार्यक्रम आर्थिक दबाव झेल रहे चीनी उद्योग में तरलता बढ़ाने के साथ किसानों को आय का एक वैकल्पिक साधन उपलब्ध कराता है। भारतीय खाद्य निगम के तहत भंडारित अधिशेष चावल और मक्के को इथेनॉल उत्पादन हेतु प्रयोग किये जाने से उन्हे एक वैकल्पिक बाजार मिल सकेगा।
पर्यावरण सुरक्षा के लिए भी अहम
वायु प्रदूषण को कम करना आज के दौर की सबसे बड़ी चुनौती है ऐसे में देश के विभिन्न अपशिष्ट बायोमास स्रोतों से ‘संपीड़ित जैव-गैस’ (Compressed Bio-Gas-CBG) उत्पादन के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने हेतु अक्तूबर 2018 में ‘किफायती परिवहन के लिये टिकाऊ विकल्प’ (Sustainable Alternative towards Affordable Transportation-SATAT) नामक योजना की शुरुआत की गई थी। इस योजना के तहत प्रस्तावित संयंत्रों (विशेषकर हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश) में संपीड़ित जैव-गैस के उत्पादन के लिये कच्चे माल के रूप में फसलों के अवशेष जैसे- धान का पुआल और बायोमास का उपयोग किया जाएगा। सतत योजना न सिर्फ ग्रीनहॉउस गैसों के उत्सर्जन को रोकने में सहायक होती है बल्कि यह कृषि क्षेत्र में फसलों के अवशेषों जैसे-पराली आदि को जलाने की घटनाओं को कम करने में सहायक है। हम सभी जानते हैं दिल्ली जैसे शहरों में वायु प्रदूषण की वृद्धि का एक प्रमुख कारण है।
‘संपीड़ित जैव-गैस’ संयंत्रों से निकलने वाले उत्पादों में से एक जैव खाद है, जिसका उपयोग खेती में किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यह ग्रामीण और अपशिष्ट प्रबंधन क्षेत्र में रोजगार के अवसरों का विकास करने के साथ किसानों के अनुपयोगी जैव-कचरे के सदुपयोग के माध्यम से उनकी आय में वृद्धि करने में सहायक होगा।
ऊर्जा सुरक्षा और जैव-ईंधनो के प्रोत्साहन से तेल आयात में कमी
वर्तमान में भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिये देश में खनिज तेल और गैस की कुल मांग का क्रमशः 84% तथा 56% अन्य देशों से आयात करता है, खनिज तेल की कुछ मात्रा को जैव-ईंधन से प्रतिस्थापित कर आयात पर निर्भरता को कम करने में सहायता प्राप्त होगी।
2030 नहीं 25 तक 20 फिसदी एथेनॉल सम्मिश्रण
वर्तमान में पेट्रोल में इथेनॉल समिश्रण वर्ष 2022 तक 10% और वर्ष 2030 तक 20% करने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन नए संशोधन के अनुसार यह लक्ष्य बदल दिया गया है 2030 की जगह 2025-26 तक 20% इथेनॉल मिश्रण करने का लक्ष्य रखा गया है जो वाहनों से होने वाले उत्सर्जन को काम करने में सहायक होगा।
कभी न खत्म होने वाला स्रोत है जैव इंधन
परंपरागत ऊर्जा स्रोत खनिज तेल, जो कि एक क्षयशील संसाधन है, के विपरीत जैव-ईंधन का उत्पादन अक्षय स्रोतों से किया जाता है। ऐसे में सैद्धांतिक रूप से जैव-ईंधन के उत्पादन और इसके उपयोग को अनंत काल तक स्थायी रूप से जारी रखा जा सकता है। ऐसे में जरूरी है सरकार के साथ-साथ जैव ईंधन से जुड़े तमाम घटक इस लक्ष्य को गंभीरता से लें ताकि तय वक्त पर इस लक्ष्य को हासिल किया जा सके।