सम्पादकीय

” आईना बनाम स्मार्टफोन “- गुरूवासरीय

एक बात जो कई बार कही और सुनी-सुनाई गई है – आईना कभी झूठ नहीं बोलता। बात में सिर्फ सच्चाई ही नहीं दम भी है। अभी तक तो हमने यही जाना था। कोई इसके मुकाबले में खड़ा नहीं था। आईना कोई भी, बेल्जियम ग्लास से ही क्यों ना बना हो, अपने काम को बखूबी अंजाम देता है। हम भी आंखें मूंदकर विश्वास करते हैं – आईने के ऊपर।

खैर! अब यहां पर भी किसी ने सेंधमारी कर दी। आईने की विश्वसनीयता पर एक प्रश्न चिन्ह, एक सवालिया निशान लग गया है!

समय के साथ ही साथ बदलाव तो आता ही है। धीरे से ही सही,

मनीष वर्मा,लेखक और विचारक

कोई चुपके से आकर कब्जा जमा लेता है। जब तक आप और हम समझते हैं, तब तक तो दुनिया एक नए कलेवर में सामने आ जाती है। वैसे भी चीजों को देखने का नजरिया सापेक्ष होना चाहिए। वस्तुनिष्ठ तरीके से आप किसी भी चीजों का मूल्यांकन नहीं कर सकते हैं।

क्या समझे आप! शायद नहीं ना?

मैं बातें कर रहा हूँ स्मार्टफ़ोन की। वही स्मार्टफ़ोन जिसने बड़े हौले से हमारे दिल और दिमाग दोनों ही पर अपने हस्ताक्षर कर दिए हैं। इसने हमारी जिन्दगी में भूचाल ला दिया है। क्रांति तो पहले ही आ चुकी थी।

आप अपने साथ अपनी जीवनसंगिनी की तरह दिन रात मोबाईल के साथ रहते हैं। अगर यह कहना अतिशयोक्ति न हो तो जीवनसंगिनी से कुछ ज्यादा समय आप इसके साथ बिताते हैं। इसके बाद भी हम कहते फिरते हैं कि बहुत कुछ रहस्य बचा हुआ है आपकी जिन्दगी में! कुछ भी तो नहीं बचा है। आप तो अब बिल्कुल ही पारदर्शी हैं।

अरे भाई आईना तो सिर्फ और सिर्फ आपको और आपके बाहरी आवरण को हूबहू दुनिया के सामने बड़ी ही खूबसूरती से पेश करता था।पता लगाना मुश्किल था इनमें असली वाला इंसानी चेहरा कौन है?

पर, भाई साहब मोबाईल कहीं आगे बढ़ गया है। आप मोबाईल फोन के साथ हैं और वह भी अपने जैसा स्मार्ट तो फिर भगवान ही मालिक।

कोई राज अब आपका राज नहीं रहा। अब आप बिल्कुल खुली हुई किताब के खुले पन्नों की माफिक हैं। जब जिसका जी करेगा, पढ़ जाएगा आकर। आप कुछ नहीं कर सकते हैं। बड़ी ही जालिम है आपकी ये नई संगिनी। बड़ी खूबसूरती और दिलकश अंदाज से आपके अंदर झांकती है। धीरे-धीरे प्रवेश करती है, आपके अंदर। आप चाह कर भी ना नहीं कर सकते हैं। आप इसके अदाओं से वशीभूत होकर बस इजाजत दिए जाते हैं। कोई रोक टोक नहीं है इसपर आपका। आपकी मर्जी पर तो इसकी दिलकश अदाओं ने तो कब्जा कर रखा है।

और तो और भाई साहब, आपने देखा होगा पहले महिलाओं के वैनिटी बॉक्स में एक अदद आईना हुआ करता था, वक्त बेवक्त जब जी चाहा चुपके से अपनी खुबसूरती निहार लिया। अब उसकी जगह भी इसने ले लिया है बड़े ही स्मार्ट तरीके से। वहां पर भी इसने बहुत हौले से कब्जा जमाया है।

सिर्फ इतना ही नहीं इसने तो आपके पूरे व्यक्तित्व को सम्मोहित कर रखा है। आप इसके सम्मोहन के गुलाम हैं। कुछ भी नहीं छुपा है आपका। बुरा नहीं है। अच्छा ही तो है आप और आपका व्यक्तित्व अब बिल्कुल पारदर्शी है। कुछ भी छुपाने की जरूरत नहीं। कोई चिंता कोई फिक्र नहीं। कोई कश्मकश, कोई अंतर्द्वंद नहीं। एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने की जरूरत ही नहीं। कई चेहरों के साथ जीने की जद्दोजहद भी नहीं। अब तो सब कुछ दिखता है!
✒️ मनीश वर्मा’मनु’