“अरे हुज़ूर, वाह उस्ताद नहीं, वाह ताज बोलिए, रविवारीय में आज श्रद्धांजलि उस्ताद साहब को
वाह उस्ताद! “अरे हुज़ूर, वाह ताज बोलिए!” – ताजमहल चाय के इस ऐतिहासिक विज्ञापन का जादू आज भी मेरे दिलो-दिमाग़ पर
ताज़ा है। ईमानदारी से कहूं तो इस विज्ञापन से पहले ना मैंने ताजमहल चाय के बारे में सुना था, ना ही ज़ाकिर हुसैन साहब के बारे में। लेकिन इस अद्भुत और प्रभावशाली विज्ञापन ने मुझ जैसे अनगिनत लोगों को न केवल ताजमहल चाय बल्कि ज़ाकिर हुसैन साहब की शख्सियत से रूबरू कराया।
हालांकि मैं चाय का शौकीन नहीं, फिर भी जब भी घर के लिए चाय ख़रीदने की बारी आई, मेरा हाथ हमेशा ताजमहल चाय के डिब्बे पर ही गया। यह असर था “वाह ताज” कहने वाले ज़ाकिर साहब का, जिनकी आवाज़ और शख्सियत ने ताजमहल चाय को एक अलग पहचान दी।
उनके निधन की खबर सुनकर दिल एकदम से सुन्न हो गया। ऐसा लगा जैसे संगीत के आसमान से एक चमकता हुआ सितारा टूटकर बिखर गया हो। अचानक उनका यूं चले जाना, यह सोचने पर मजबूर करता है कि शायद ईश्वर भी अच्छे इंसानों को अपने पास ही रखना चाहते हैं।
पता नहीं उन्हें ऐसी कौन सी बीमारी हो गई थी जिसकी दवा हम आज़ तक ढूंढ नहीं पाए हैं।
ख़ैर! मनु ये सब दिल को बहलाने वाली बातें हैं। जिंदगी एक सफ़र है और मौत मुकाम है , प्रारब्ध है ! हम सभी निमित्त मात्र हैं।
क्लासिकल संगीत का मनु पर कोई विशेष प्रभाव नहीं रहा। मगर ज़ाकिर हुसैन साहब की शख्सियत में एक ऐसा आकर्षण था, जिसने मुझे हमेशा उनकी ओर खींचा। जब भी उनका कोई कार्यक्रम टीवी पर आता, मैं उसे देखने से खुद को रोक नहीं पाता। चाहे मैं उनके तबले की बारीकियों को समझूं या नहीं, उनके वादन का आनंद लेना मेरे लिए एक अद्भुत अनुभव होता।
उनकी उंगलियों से तबले पर निकलने वाली ताल और स्वर जैसे सीधे दिल तक पहुंचते थे। कभी किसी गायक या वादक के साथ संगत करते हुए, तो कभी अकेले अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए, ज़ाकिर साहब ने हर बार दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। उनकी उंगलियां जैसे तबले पर नृत्य करती थीं और हर ताल एक नई कहानी कहती थी।
ज़ाकिर हुसैन साहब जैसे लोग बार-बार जन्म नहीं लेते। उनकी कला, उनका व्यक्तित्व, और उनकी मुस्कान सब कुछ अद्वितीय था। यह सोचकर दिल को तसल्ली मिलती है कि उन्होंने सिर्फ शरीर छोड़ा है, उनकी आत्मा, उनकी कला, उनकी खुशबू आज भी हमारे बीच ज़िंदा है। पर यह तो हमारा दिल कह रहा है जो शायद दिमाग़ को मंजूर नहीं।
ज़ाकिर हुसैन साहब, आप जहां भी हों, हमें यकीन है कि आप अपनी ताल और सुरों से उस दुनिया को भी रोशन कर रहे होंगे। आप हमेशा हमारे दिलों में रहेंगे।
अलविदा, उस्ताद।
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✒️ मनीश वर्मा ‘मनु’