आज है जयप्रकाश नारायण जयंती, जानें JP से जुड़ी खास बातें
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को नया जीवन देने वाले जयप्रकाश यानी जेपी का जन्म आज ही के दिन 1902 में हुआ था. देश की आजादी का जिक्र होने पर जिस तरह सबसे पहले और सबसे प्रमुखता से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जिक्र होता है, उसी तरह देश की दूसरी आजादी का सबसे बड़ा श्रेय लोकनायक जयप्रकाश नारायण को जाता है. दूसरी आजादी यानी देश में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से थोपे गए आपातकाल का खात्मा और लोकतंत्र की बहाली.
जयप्रकाश नारायण का जन्म बिहार और उत्तर प्रदेश के सीमा पर मौजूद छोटे से गांव सिताबदियारा में हुआ था. प्राथमिक शिक्षा गांव में हासिल करने के बाद सातवीं क्लास में उनका दाखिला पटना में कराया गया था. बचपन से ही मेधावी जयप्रकाश को मैट्रिक की परीक्षा के बाद पटना कॉलेज के लिए स्कॉलरशिप मिली. बताया जाता है कि वह पढ़ाई के दौरान ही गांधीवादी विचारों से प्रभावित थे और स्वदेशी सामानों का इस्तेमाल करते थे. वह हाथ से सिला कुर्ता और धोती पहनते थे.
महज 18 साल की उम्र में 1920 में जेपी का विवाह प्रभावती से हुआ. कुछ साल बाद ही प्रभावती ने ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया और अहमदाबाद में गांधी आश्रम में राष्टपिता की पत्नी कस्तूरबा के साथ रहने लगीं. जेपी ने भी पत्नी के साथ ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया. जेपी ने पढ़ाई के दौरान ही अंग्रेजों के खिलाफ जंग भी छेड़ दी थी. अंग्रेज सरकार की ओर से वित्तपोषित होने की वजह से जेपी ने कॉलेज को बीच में ही छोड़ दिया और बिहार कांग्रेस की ओर से चलाए गए बिहार विद्यापीठ को जॉइन किया था. समाजशास्त्र की पढ़ाई करते हुए उन्होंने अपना खर्च वहन करने के लिए गैराज में काम किया.
आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभा रहे जेपी को 1932 में गिरफ्तार कर लिया गया. जेल में उन्हें काफी यातनाएं दी गईं. जेल से बाहर आने के बाद वह भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए. इसी दौरान कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी का गठन हुआ और जेपी इसके महासचिव बनाए गए. 1954 में उन्होंने बिहार में बिनोवा भावे के सर्वोदल आंदोलन के लिए काम करने की घोषणा की थी. 1957 में उन्होंने राजनीति छोड़ने का भी फैसला कर लिया था. हालांकि, 1960 के दशक के अंत में एक बार फिर वे राजनीति में सक्रिय हो गए थे. उन्होंने किसानों के आंदोलनों की भी अगुआई की.
जयप्रकाश नारायण इंदिरा गांधी के चाचा की तरह थे. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन का ये महानायक, आजादी के बाद सक्रिय राजनीति से दूर हो गया था. लेकिन वह समय-समय पर नेताओं को भ्रष्टाचार से बचने के लिए सचेत करते रहते थे. अक्सर जेपी, इंदिरा को भी कड़े शब्दों में बोलने से नहीं चूकते थे, कई बार उनके नेताओं के भ्रष्टाचार की खबरें मिलती थीं, तो सीधे इंदिरा के पास पहुंच जाते थे, लेकिन उन्हें धीरे-धीरे लगने लगा कि इंदिरा उनकी बातों पर तवज्जो नहीं देतीं.
जेपी भी इंदिरा की तानाशाही और कांग्रेस में बढ़ते भ्रष्टाचार के चलते लोगों की मुश्किलों से वाकिफ थे. जयप्रकाश नारायण प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के खिलाफ थे. 1974 में पटना में छात्रों ने आंदोलन छेड़ा था. आंदोलन को शांतिपूर्ण तरीके से अंजाम देने की शर्त पर उन्होंने इसकी अगुआई की. ऐसे में इंदिरा ने एक बार जेपी को समझौते के लिए अपने निवास में बुलवाया, लेकिन इंदिरा चुप बैठी रहीं और सारी बात बाबू जगजीवन राम करते रहे. जेपी अवाक थे, इंदिरा उनसे हमेशा अकेले मिलती थीं. इंदिरा ने बहुत थोड़ा बोला और वही उनको चुभ गया. इंदिरा ने कहा, ‘जरा देश के बारे में भी सोचिए…’, हैरान जेपी ने बस इतना कहा, ‘इंदु… मैंने देश के अलावा सोचा ही क्या है?’ उनको लग गया कि अब मुकाबला आर पार का होगा.
इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा चुनाव में अयोग्य ठहराए जाने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी. विपक्ष के सभी बड़े नेताओं को जेल में ठूस दिया गया और अभिव्यक्ति की आजादी पर भी पहरा लगा दिया गया. जेपी भी जेल गए और करीब सात महीनों तक सलाखों के पीछे रहे. उनकी तबीयत भी उन दिनों खराब थी, लेकिन जो संप्रूण क्रांति का नारा दिया, उसने देश में लोकतंत्र की बहाली दोबारा सुनिश्चित कर दी. उनके जनआंदोलन का ही परिणाम था कि करीब 21 महीने बाद 21 मार्च 1977 को आपताकाल खत्म हो गया.
जयप्रकाश नारायण ने उस समय देश को एकजुट किया. धीरे-धीरे उनके साथ तमाम कांग्रेस विरोधी दल और इंदिरा विरोधी कांग्रेस गुट के लोग भी आ गए, अटल, आडवाणी, जॉर्ड फर्नांडिस, सुब्रमण्यम स्वामी, चंद्रशेखर जैसे सभी विरोधी दलों के नेता थे. 72 साल की उम्र में वो पटना के गांधी मैदान में लाठियां खा रहे थे. लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, राम विलास पासवान, केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सुशील मोदी जैसे छात्र नेता बिहार में उनके साथ हो लिए, सम्पूर्ण क्रांति का नारा दिया गया.
आपातकाल के बाद देश में चुनाव हुए तो कांग्रेस पार्टी की करारी हार हुई और केंद्र में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ. खुद इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी चुनाव हार गए थे. महानायक जेपी का सपना पूरा हो जाता है. जेपी को नेता बनाने वालों की तो बांछें खिल जाती हैं, एक बार फिर उसी शाम वहीं एक विजय रैली आयोजित की जाती है. कायदे से सभी नेताओं के साथ जेपी को भी वहीं होना चाहिए था, लेकिन वो नहीं जाते हैं. वो जाते हैं 1, सफदरजंग रोड यानी इंदिरा गांधी का घर, हार के बाद ये उनकी पहली रात थी, उस घर में.
अद्भुत था उनका मिलना, जेपी भी रोए और इंदिरा भी रोईं. जेपी उनके बिना पराजित नहीं हो सकते थे और उनको हराए बिना लोकतंत्र भी नहीं बचना था. अब जेपी पूरी तरह से अपने चाचा वाले अवतार में थे, इंदिरा से आत्मीयता से पूछते हैं कि सत्ता के बाहर अब काम कैसे चलेगा? घर का खर्चा कैसे निकलेगा? इंदिरा गांधी ने जवाब दिया, ‘घर का खर्चा तो निकल आएगा, पापू (इंदिरा नेहरूजी को यही बोलती थीं) की किताबों की रॉयल्टी आ जाती है. लेकिन मुझे डर है कि ये लोग मेरे साथ बदला निकालेंगे.’ जेपी के मन का मैल भी अब धुल चुका था. इंदिरा से उन्हें सुहानुभूति थी. रात में ही मोरारजी देसाई को एक पत्र लिखा कि इंदिरा के साथ बदले की कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए.
मोरारजी देसाई ने कोशिश भी की थी, लेकिन गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह भरे बैठे थे, वो इंदिरा को जेल भेजकर ही माने थे. इधर, जेपी की भी तबीयत अचानक से खराब हो गई थी, उनको डायलिसिस पर जाना पड़ गया और 8 अक्टूबर 1979 को दिल की बीमारी और डायबिटीज के कारण पटना में जेपी का निधन हो गया और इंदिरा की कोई भी मदद नहीं कर पाए. 1999 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था.