सम्पादकीय

रविवारीय- करोड़ों भारतीयों की आस्था, श्रद्धा और आध्यात्म का विलक्षण संगम है महाकुंभ

महाकुंभ केवल गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम पर एक भव्य स्नान का अवसर नहीं है; यह करोड़ों भारतीयों की आस्था, श्रद्धा और आध्यात्म का विलक्षण संगम भी है। यह आयोजन न

मनीश वर्मा, लेखक और विचारक

केवल सरकार और प्रशासन की उत्कृष्ट व्यवस्था का प्रमाण है, बल्कि स्थानीय जनता के सहयोग और धैर्य का भी परिचायक है। आपको जितने लोग सामने से व्यवस्था सम्हालते हुए दिखते हैं उनसे कहीं अधिक लोग पर्दे के पीछे कार्यरत हैं। किसी एक व्यक्ति के वश की बात नहीं है इतने बड़े आयोजन को सफलतापूर्वक संपन्न कराना।

संगम स्नान से पूर्व मन में कई आशंकाएं थीं—क्या व्यवस्था सुचारु होगी? क्या इतनी विशाल भीड़ में सुरक्षा सुनिश्चित हो पाएगी? लेकिन वहाँ पहुँचने के बाद सारी शंकाएँ निर्मूल सिद्ध हुईं। प्रशासन की कुशल व्यवस्था ने हर स्तर पर अनुशासन बनाए रखा।
चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल तैनात, सेना पुलिस और अर्धसैनिक बलों की सतर्क उपस्थिति।
स्वयंसेवी संस्थाओं और प्रयागराज के स्थानीय नागरिकों ने सहयोग की मिसाल पेश की।
लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं की आवाजाही के बावजूद अनुशासन और व्यवस्था बनी रही।
हालाँकि, अर्धरात्रि में हुई भगदड़ एक दुखद घटना थी, जिसने कुछ परिवारों को अपार पीड़ा दी। यह एक त्रासदी थी, जिसके प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करना आवश्यक है। इसे आप संयोग कहें या दुर्योग या फ़िर प्रारब्ध पर छोड़ दें। जो कुछ भी हुआ। कारण चाहे कुछ भी रहा हो बहुत दुखदाई था। हम कब एक जान की भी क़ीमत समझेंगे।

मेला स्थल पर हर समय लगभग 40-50 लाख लोगों की उपस्थिति, और एक अनुमान के मुताबिक अब तक कुल मिलाकर 50 करोड़ से अधिक लोगों का आगमन! इतने श्रद्धालुओं का संगम स्नान—यह संख्या कई देशों की कुल जनसंख्या से भी अधिक है।

श्रद्धालुओं में अधिकतर मध्यम और निम्न मध्यम वर्गीय लोग, जो अपनी आस्था, श्रद्धा और विश्वास के ध्वजवाहक हैं। प्रयागराज आने वाली हर सड़क पर अभूतपूर्व ट्रैफिक जाम। लगभग आठ से दस घंटे जाम में रहने के वावजूद लोगों के उत्साह में कोई कमी नहीं। क्या बच्चे, क्या बुजुर्ग सभी संगम स्नान के प्रति उत्साह से लबरेज़।

उच्च वर्ग के लोगों ने तो अपने लिए वीआईपी मार्ग बना लिए थे, जो कहीं-न-कहीं भेदभाव का अहसास करा रहे थे। अब वक्त आ गया है सरकारी तौर पर हम यह तय कर दें कौन वी आई पी है और कौन नहीं। एक वर्गीकरण जरूरी है।

संगम की ओर जाने वाले मार्गों पर अनुशासित भीड़, जिससे प्रशासन को भीड़ प्रबंधन में सहायता मिली।
महाकुंभ की आत्मा उसके अखाड़े हैं। नागा साधु और उनके 25-30 छोटे-बड़े अखाड़े महाकुंभ की धार्मिकता, आस्था और विश्वास को एक नया आयाम देते हैं।

नागा साधुओं की बेबाकी और अक्खड़पन, उनकी अलग दुनिया, उनके अनूठे विचार और जीवनशैली इस मेले को विशिष्ट बनाते हैं।

यह एक धर्म संसद की तरह कार्य करता है, जहाँ भारतीय संस्कृति और आध्यात्म का अनोखा संगम देखने को मिलता है।

यहाँ कई मिथक टूटते हैं, वर्जनाएँ समाप्त होती हैं और आध्यात्म का एक नया स्वरूप सामने आता है।
महाकुंभ सिर्फ प्रयागराज के संगम तट पर स्नान कर लेने तक सीमित नहीं है। यह एक अनुभव है, एक आध्यात्मिक यात्रा है, जो सदियों से चली आ रही है।

यह एक अद्भुत गाथा है, जिसने पाश्चात्य संस्कृति में भी अपनी पैठ बनाई है। यही कारण है कि महाकुंभ में विदेशी श्रद्धालुओं की उपस्थिति भी एक अच्छी तादाद में देखी गई।

बाजारवाद से शिकायत हो सकती है, लेकिन जहाँ लोग होंगे, वहाँ बाज़ार भी सजेगा। इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं।यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।

महाकुंभ हर तरह की वर्जनाओं और सीमाओं से परे है। यह श्रद्धा, आस्था और विश्वास का उत्सव है, जहाँ किसी भी तर्क-वितर्क की गुंजाइश नहीं होती। इसे खुले मन से स्वीकार करें, क्योंकि यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का सबसे बड़ा उत्सव है।एक गाथा है जो पीढ़ियों से अनवरत जारी है।

✒️ मनीश वर्मा’मनु’

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