इस मंदिर में नहीं है कोई मूर्ति, पढ़िए मॉं अंबिका भवानी मंदिर की और खास बातें
छपरा – सारण जिला अन्तगर्त दिघवारा प्रखंड का अंबिका स्थान आमी न सिर्फ पूर्वाचल, उतर प्रदेश,उतरी व मध्य बिहार के गृहस्थ श्रद्वालुओं व भक्तो की श्रद्वा स्थली है। बल्कि वैष्णवी शक्ति उपासक व वाममार्गी कपालिक अवघुतों की साधना तथा सिद्वि की शक्तिपीठ है।अंबिका भवानी मंदिर प्राचीन धार्मिक स्थल है। पूरे भारत वर्ष में मात्र एक ही ऐसा मंदिर है जहां की मूर्ति नहीं है। इसे देवी सती के जन्म और मृत्यु स्थल के रूप में मान्यता मिली हुई है। मॉं अंबिका भवानी की महिमा अपरंपार है। माता के दरबार में हर किसी की मुराद पुरी होती है। नतिजन यहां नवरात्र में लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती है। लोग बताते है कि आमी में जब से मां अंबिका भवानी की पिंडी स्थापित हुआ। उस समय से हीं यहां मॉं दुर्गा की प्रतिमाएं स्थापित नहीं की जाती हैं। लोगों का भीड़ मंदिर में नवरात्र में लाखों की संख्या में जुटती है। मंदिर परिसर भक्तों से गुलजार रहता है।
अनादि काल से शक्ति उपासना की पुण्य भूमि बिहार के तीन शक्ति पीठों (गया सर्वमंगला, छिन्न मस्तिका, हजारीबाग, झारखंड तथा अम्बिका भवानी आमी दिघवारा सारण) में मूर्धन्य आमी वाली अम्बिका भवानी के सच्चे दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता। छपरा सोनपुर मध्य रेलवे व एनएच 19 के दिघवारा स्टेशन व अंबिका भवानी हाल्ट स्टेशन से 5 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम सारण गजेटियर द्वारा घोषित दक्ष प्रजापति क्षेत्र औैर क्षेत्र के बीच गंगा तट पर स्थित मॉं अंबिका भवानी मंदिर शक्ति साधकों के लिए विशेष महत्व का स्थान है। उत्तर में हरिहर नाथ और पश्चिम में बाबा धर्मनाथ छपरा चतुष्कोण में समान दूरी पर स्थित है तो त्रिभुजास्थिति में समान दूरी पर पशुपतिनाथ, काठमांडू,नेपाल, रावणेश्वर महादेव बैद्यनाथ धाम,विश्वेश्वर महादेव वाराणसी उप्र स्थित है।
मांर्कडेय पुराण में वर्णित राजा दक्ष की कर्मस्थली आमी में अवस्थित इस मंदिर का पौराणिक इतिहास रहा है। बताया जाता है कि यह स्थल प्रजापति राजा दक्ष का यज्ञ स्थल एवं राजा सूरत की तपस्या स्थली रहीं है। कहते हैं प्रजापति राजा दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में महादेव को आमंत्रित नहीं किया गया था। लिहाजा सती ने पिता द्वारा अपमानित किये जाने पर हवन कुंड में कूद कर आत्म हत्या कर ली थी। इससे आक्रोशित होकर भगवान शिव सती के शव को लेकर तांडव नृत्य करने लगें। उनके तांडव नृत्य को शांत कराने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के शव को टुकड़े-टुकड़े कर दिये। उनके शव के टुकड़े जहॅा-जहॅा गिरे वही शक्ति पीठ के रूप में जाना गया।
मंदिर की खासियत ये है कि मां सती के शरीर की भस्म को यहीं रखा गया था। यहां हर वर्ष चैत मास में एक बड़ा मेला लगता है। दुर्गा सप्तशती के अनुसार राजा सुरथ ने भगवती की यहीं पूजा की थी। नवरात्र के मौके पर यहां बिहार के साथ ही कई राज्यों के श्रद्धालू दर्शन के लिए आते है। इतिहास इस बात की साक्षी है चाहे तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही क्यों न हों सरकार गठन होने के पूर्व में भी मॉ अंबिका भवानी माथा टेके थे। इसके बाद ही उनकी मुराद पूरी हुयी थी।