प्राच्य-साहित्य के मनीषी विद्वान थे आचार्य धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री
जयंती पर साहित्य सम्मेलन में पुस्तक ‘श्रीकांत व्यास के अनमोल वचन’ का हुआ लोकार्पण, हुई काव्य-पाठ-लघुकथा-गोष्ठी
पटना,। कला, संगीत और साहित्य के संरक्षण और पोषण में बिहार के जिन राज-घरानों के नाम आदर से लिए जाते हैं, उनमें बनैली-राज का नाम विशेष उल्लेखनीय है। अपेक्षाकृत बहुत छोटा होकर भी बनैली ने इन सारस्वत प्रवृतियों के संरक्षण और पोषण में जो कार्य किए, उनसे उसके प्रति सहज ही मन श्रद्धा से भर उठता है। बनैली के राजाबहादुर कीर्त्यानंद सिंह कोमल भावनाओं और सारस्वत-चेतना के साधु-पुरुष थे। उन्होंने न केवल साहित्य और संस्कृति के पोषण और उनके विकास के लिए बड़े-बड़े दान-अवदान ही दिए, अपितु अपने राज-दरबार में साहित्यकारों और कलाकारों को बड़े आदर और सम्मान से प्रतिष्ठा भी दी। उन्होंने बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के भवन-निर्माण में भी सन १९३७ में एक मुश्त दस हज़ार रूपए की सहायता राशि दी थी। तब १२ ग्राम स्वर्ण-आभूषण का मूल्य ५० रूपए से कम था।
यह बातें गुरुवार को बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में कीर्त्यानंद सिंह एवं धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री जयंती पर आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने मनीषी विद्वान धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए उन्हें प्राच्य-साहित्य का महान मनीषी विद्वान बताया और कहा कि, प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियों पर किए गए उनके कार्य, साहित्य-संसार की अमूल्य धरोहर हैं। इस विषय पर, राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा प्रकाशित उनकी शोध-पुस्तक विश्व के ३० बड़े विश्वविद्यालयों के पुस्तकालयों में शोधार्थियों के लिए संदर्भ-ग्रंथ के रूप में उपयोग में लाई जा रही हैं।
आचार्य शास्त्री के पुत्र नरेंद्र कुमार ने कहा कि पिताजी के साथ उनके सत्संग की स्मृतियाँ आज भी मन को रोमांचित करती हैं। उनके गुरुजन पं रामावतार शर्मा जी आदि को उनके साथ विमर्श करते देखना भी आनंद दायक था । तब लगता था कि जीवन का इससे सार्थक समय और क्या हो सकता है।
इस अवसर पर, चर्चित लेखक श्रीकांत व्यास की पुस्तक ‘श्रीकांत व्यास के अनमोल वचन’ का लोकार्पण भी किया गया। यह पुस्तक श्री व्यास के उपदेशात्मक विचारों का संकलन है। आचार्य शास्त्री के दूसरे पुत्र मधुरेंद्र, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, बच्चा ठाकुर, डा ध्रुव कुमार तथा बलराम प्रसाद सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
समारोह के मुख्य अतिथि और देश के सुविख्यात कवि पं सुरेश नीरव ने अपनी शायरी के ज़रिए यह कहा कि ”बात मूद्दे की कोई हम कभी कहते नहीं / जो सिफ़ारिश का है खेमा हम उसमें रहते नहीं। जो उगा लेते हैं सूरज अपने ही दालान में/ वो परायी चाँदनी के आसरे रहते नहीं।”
हरियाणा से आए कवि राजेश प्रभाकर, मध्यप्रदेश से आयीं कवयित्री शकुंतला तोमर, उत्तरप्रदेश से आयीं कवयित्री मधु मिश्रा, डा रत्नेश्वर सिंह, बच्चा ठाकुर, डा सुषमा कुमारी, ने भी अपने काव्य-पाठ से अपनी काव्यांजलि दी।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने ‘फ़क़ीर’, डा ध्रुव कुमार ने विभा रानी श्रीवास्तव ने ‘निर्विष’ शीर्षक से, जय प्रकाश पुजारी ने ‘बेशर्म’ शीर्षक से, राज प्रिया रानी ने ‘हिन्दी राजभाषा’ शीर्षक से, ई अशोक कुमार ने ‘पत्नी का इंतज़ार’ शीर्षक से, कमल किशोर वर्मा ‘कमल’ ने ‘अकेलापन’ शीर्षक से, अनिल कुमार ने ‘संस्कारी’ शीर्षक से, अरविंद अकेला ने ‘मेरे घर से निकलो’ , बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता ने ‘घिनौना’ तथा अर्जुन प्रसाद सिंह ने ‘कातिल’ शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
इस अवसर पर प्रो सुशील झा, उर्मिला नारायण, अरविंद कुमार सिंह, चंदा मिश्र, कमल नयन श्रीवास्तव, प्रो अप्सरा, डा नागेश्वर यादव, डा सरिता सिन्हा, हिमांशु दूबे, सदानंद प्रसाद, अरुण कुमार श्रीवास्तव, बाँके बिहारी साव, अवध विहारी सिंह, रणधीर मिश्र, कवि अनिल कुमार, रवि प्रीत आदि सुधीजन उपस्थित थे।