सावन प्रेम, उसकी अभिव्यक्ति और तृप्ति का मास
“धरती पर हर ओर हरा रंग छाया है।
लगता है सावन फिर झूम कर आया है।”
सावन की दस्तक के साथ ही प्रकृति को प्रेम का एहसास होने लगता है और वह पूर्ण श्रृंगार करके हरियाली की चादर ओढ़ बारिश का इन्तजार करती है। वर्षा की बूंदें जब धरा पर पड़ती हैं तो उसके इन्तजार की घड़ी समाप्त होती है और उसका हृदय तृप्त होता है। घनघोर गर्मी से व्याकुल धरती सावन के पावन मास में वर्षा के पवित्र जल से धुलकर राहत का अनुभव करती है। इस मास में प्रकृति की हरियाली की छटा और आसमान में तैरती घटा का नज़ारा अद्भुत होता है।
सावन प्रेम, उसकी अभिव्यक्ति और तृप्ति का मास होता है। सावन के झूलों पर झूलते प्रेमी युगलों के प्रेम गीत फिज़ा में गूँज कर पूरी कायनात को प्रेम रस से सराबोर कर देते हैं। सावन के झूले राधा और कृष्ण को अत्यंत प्रिय हैं।। उनके अमर प्रेम की चर्चा सावन के झूलों की चर्चा के बगैर अधूरी रह जाती है। इसी मास में कृष्ण ने वृंदावन में राधा और अन्य गोपियों के साथ रास रचाया था। अतः यह महीना कृष्ण और गोपियों के अमर प्रेम का भी प्रतीक है।
सावन का पवित्र महीना बाबा भोलेनाथ का भी प्रिय मास है। पौराणिक मान्यता है कि इस मास में भगवान शिव अत्यंत प्रसन्नचित्त रहते हैं और अपने भक्तों की सभी कामनाओं को पूर्ण करते हैं। इसलिए इस मास में श्रद्धालु पूरी श्रद्धा एवं भक्ति से भगवान शिव की पूजा, अराधना करते हैं। लाखों श्रद्धालु कावर यात्रा भी करते हैं। शिवालयों में मेला लगता है और पूरे मास भक्तों की भीड़ लगी रहती है। सावन की सोमवारी का विशेष महत्व होता है। सावन में प्रत्येक सोमवार को शिव मंदिरों में शिव भक्तों की भारी भीड़ शिव दर्शन के लिए उमड़ पड़ती है जिसे संभालने में प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ती है।
सावन मास कृषि कार्य के लिए भी अत्यंत उपयुक्त होता है। इस मास में वर्षा की शुरुआत के साथ ही धान की रोपाई का कार्य आरंभ हो जाता है। धान की रोपाई के लिए खेतों में अधिक पानी की आवश्यकता होती है। अच्छी वर्षा के बगैर धान की रोपनी का होना संभव नहीं होता है। सावन के आरंभ के साथ ही वर्षा का होना शुरू हो जाता है और किसान धान की रोपाई के काम में लग जाते हैं। इसलिए यह मास किसानों के लिए खुशी और उत्साह लेकर आता है। धान की अच्छी पैदावार के कारण ही भारत विश्व के बड़े चावल उत्पादक देशों में से एक है।
सावन का महीना अनेक पर्व-त्योहारों को भी साथ लाता है। सोमवारी, रक्षा-बंधन इत्यादि कई त्योहार इसी माह में होते हैं। उमंग और उत्साह से भरपूर इस मास के आगम के साथ कई मौसमी बीमारियां भी दस्तक देने लगती हैं। इसमाह में वातावरण में नमी अधिक होने के कारण कई प्रकार के त्वचा संबंधी रोग होते हैं। जहाँ तहाँ जल जमाव होने के कारण ये स्थान मच्छरों, मक्खियों एंव अन्य छोटे कीटों के प्रजनन स्थल बन जाते हैं। जिससे मलेरिया, हैजा इत्यादि बीमारियों का फैलाव होता है। बरसात के पानी के बिलों में घुस जाने के कारण साँप, बिच्छू इत्यादि बिलों में रहने वाले जीव बाहर निकल आते हैं। इसलिए इस मास में साँप दंश की घटनाएँ ज्यादा घटित होती हैं। इस माह में अधिक वर्षा के कारण नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है और निचले इलाकों में बाढ़ का पानी भर जाता है जिससे जान – माल का बड़ा नुकसान होता है। हमारे देश में एक बड़ी आबादी को हर साल बाढ की त्रासदी को झेलना पड़ता है। अतः सावन मास के उमंग का आनंद लेने के लिए सावधानी बहुत जरूरी है।
इस वर्ष कोरोना के कारण सावन मास में होने वाली चहल- पहल में कमी आई है। शिवालयों की रौनक कम हो गई है। कोरोना के क़हर को देखते हुए सरकार और प्रशासन द्वारा कावर यात्रा को बन्द किया गया है। इसी कड़ी में देवघर का प्रसिद्ध श्रावणी मेला और श्रद्धालुओं की कावर यात्रा को भी प्रतिबन्धित किया गया है ताकि कोरोना वायरस का संक्रमण न बढ़ सके। झारखंड की सरकार ने देशवासियों से अपने घरों को ही देवघर बनाने की अपील की है और घरों में रहकर ही बाबा भोलेनाथ की पूजा, आराधना करने का आग्रह किया है। जनता को चाहिए कि सरकारी निर्देशों का पालन करते हुए दोगुनी सावधानी एवं उमंग के साथ सावन का स्वागत करे ताकि भारत कोरोना से जंग जीतकर अगले सावन के आगमन की हार्दिक प्रतीक्षा कर सके।
सुनिता कुमारी ‘ गुंजन ‘
सहायक प्रोफेसर
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं)