दीपावली विशेष – आधुनिक चकाचौंध में भी मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा बरकरार, तीन प्रकार के दिए बनाये जा रहे हैं
उमाशंकर, गया।
पूजा-पाठ से लेकर लोग घरों को सजाने में भी मिट्टी के दीये का इस्तेमाल अधिक करते हैं। ऐसे में कुम्हारों की व्यस्तता बढ़ गई है। जोरशोर से दीये बनाने में जुटे हैं। तीन प्रकार दीये बनाए जा रहे हैं।
दीये बना रहे रामजी प्रजापत कहते हैं, कि सबसे अधिक दीरी दीये (छोटा दीया) की मांग में बाजार में है। पूजा-पाठ में इसका इस्तेमाल अधिक लोग करते हैं। दीरी दीये कम घी के मात्रा के बावजूद जल जाता है। इसी कारण लोग इसका इस्तेमाल अधिक करते हैं।
दीयों की रोशनी के बिना दिवाली अधूरा है। आधुनिक चकाचौंध में भी मिट्टी के दीये जलाने की परंपरा बरकरार है। पूजा-पाठ से लेकर लोग घरों को सजाने में भी मिट्टी के दीये का इस्तेमाल अधिक करते हैं। ऐसे में कुम्हारों की व्यस्तता बढ़ गई है। जोरशोर से दीये बनाने में जुटे हैं।