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और ढह गया एक और वटवृक्ष…

अनूप नारायण सिंह

बिहार सरकार में स्वास्थ्य और कृषि मंत्री रहे समाजवादी आंदोलन के नायक नरेंद्र सिंह जी का मेरे ऊपर सदैव स्नेह रहा। भीड़ में चेहरा पहचान कर पास बुला लेते, बिहार सरकार में कृषि मंत्री थे। अक्सर आना-जाना होता था, बहुत कुछ सीखने का मौका मिला विकट से विकट परिस्थिति में घबराते नहीं थे। कोई भी व्यक्ति कोई समस्या लेकर जाए मुस्कुराते हुए उसका निदान करते थे, ऐसा करक स्वभाव था कि कोई भी उनके करीब जाने से डरता था सोचता था कब क्या पूछ देंगे अगर सही जवाब नहीं दिया तो फिर उसकी खैर नहीं पर मैं एकलौता ऐसा अपवाद रहा जिसे कभी भी उन्होंने डांटा नहीं सदैव स्नेह दिया।

अपने छात्र जीवन राजनीतिक जीवन के कई अनछुए पहलुओं को शेयर किया बताया कि राजनीति पैसा नहीं है एक संघर्ष है जो सदैव करना है। अपनी परिवार की दूसरी पीढ़ी के बिहार सरकार में मंत्री थे बड़े पुत्र अभय सिंह के निधन के बाद से नरेंद्र बाबू मानसिक रूप से काफी टूट चुके थे। अभय प्रताप सिंह उनका सपना थे, उनका विजन थे,पुत्र अभय प्रताप जमुई से विधायक थे तो छोटे पुत्र सुमित कुमार सिंह चकाई से झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक। 2020 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने बड़े पुत्र अभय प्रताप का टिकट जमुई से काटा तो जदयू ने नामांकन के एक दिन पूर्व चकाई से पुत्र सुमित कुमार सिंह का टिकट काट दिया। तबीयत ठीक नहीं रहने के बावजूद नरेंद्र बाबू जमुई पहुंचे जय घोष हुआ राष्ट्रीय लोक समता पार्टी से अजय प्रताप ने जमुई से नामांकन किया तो निर्दलीय सुमित कुमार सिंह ने चकाई से नामांकन किया।

इसी दौरान नरेंद्र सिंह की तबीयत बिगड़ी और उन्हें पटना एम्स में एडमिट करना पड़ा जिसका प्रभाव चकाई पर तो नहीं पड़ा पर जमुई के चुनाव पर पड़ा चकाई में सुमित सिंह डटे रहे निर्दलीय उन्हें वही चुनाव चिन्ह मिला जो पिता को पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मिला था, सेव छाप चकाई के लोगों को सेव पसंद आया और 2020 के विधानसभा चुनाव में पूरे बिहार विधान सभा में अकेले निर्दलीय विधायक के रुप में सुमित कुमार सिंह चुनाव जीत कर आए,यह प्रभाव था नरेंद्र सिंह का।

अंतिम वक्त पर सुमित कुमार सिंह का टिकट काटने वाले नीतीश कुमार चुनाव परिणाम के बाद अल्पमत में थे उन्हें सुमित कुमार सिंह का सहारा चाहिए था नरेंद्र सिंह ने पुत्र पर कभी भी अपना आदेश नहीं थोपा, उन्हें अपना निर्णय खुद लेने की आजादी दी और सुमित कुमार सिंह ने बिहार के विकास को देखते हुए नीतीश सरकार का समर्थन किया और बदले में उन्हें उसी मंत्रिमंडल में विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री बनाया गया। नरेंद्र बाबू का छपरा के लोगों पर भी अच्छा खासा प्रभाव था पूर्व सांसद स्वर्गीय उमाशंकर सिंह प्रभुनाथ सिंह के परिवार से उनके काफी मधुर रिश्ते थे। नरेंद्र बाबू जात की राजनीति के खिलाफ थे वे सदैव कहते थे जमात की राजनीति हो।

दिल्ली एम्स में लिवर के गांठ के ऑपरेशन से पहले आखिरी मुलाकात मंत्री सुमित कुमार सिंह के आवास पर हुई थी उन्होंने अपने पटना आवास फुलवारी शरीफ पर मुझे आमंत्रित किया था कहा था इस बार बहुत कुछ देना है मैंने कई बार फोन किया पर उन्होंने कहा कि दिल्ली से लौट कर आता हूं तो फिर लंबी बातचीत होगी। पहली बार जब लॉकडाउन लगा सब लोग परेशान थे पर नरेंद्र बाबू अपने चर्चित परिचित लोगों को फोन कर उस संकट की घड़ी में आर्थिक मदद कर रहे थे, उनकी सुध बुध ले रहे थे खुद अपने गांव में हल चलाते गायों को चारा खिलाते उनका फोटो और वीडियो वायरल हुआ। राजनीति के शिखर पर पहुंचकर भी नरेंद्र बाबू आम थे।

आपातकाल के दौरान के कई किस्से कहानियां भी लिखना बाकी है जो उनके श्रीमुख से सुनने को मिला राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के संग के अपने संस्मरण लोजपा में टूट और फिर नीतीश कुमार के राज्य रोहन से लेकर कई कहानियां अभी अधूरी पड़ी रह गई। परिवार के सदस्यों के अलावा नरेंद्र बाबू के दो अत्यंत विश्वासी लोगों में वरिष्ठ पत्रकार दिनेश सिंह व राजनीतिक कार्यकर्ता धनंजय सिंह शामिल थे। छपरा के प्रति नरेंद्र बाबू का प्रेम ही था कि उन्होंने सोनपुर बरबट्टा निवासी राजा साहब के नाम से मशहूर बाबू लगन देव सिंह की पौत्री व वरिष्ठ अधिवक्ता ओम कुमार सिंह की पुत्री सपना सिंह के संग अपने विधायक पुत्र सुमित सिंह का विवाह किया।

एक कुशल राजनेता एक सशक्त अभिभावक एक प्रखर वक्ता कई रूप थे नरेंद्र बाबू के। नरेंद्र बाबू की बोली में कोई लाग लपेट नहीं होती थी जो बोलते थे खड़ा बोलते थे कड़ा बोलते थे। यही कारण था सत्ता से लंबे वक्त तक संबंध नहीं रह पाता था जिन लोगों को लड़ाई लड़ कर सत्ता पर बैठाते थे वही लोग बाद में नरेंद्र सिंह को अपने राह का कांटा समझने लगते थे। पर नरेंद्र बाबू भी कहां हार मानने वाले थे पूरे देश में घूम-घूम कर जनविरोधी नीतियों वाले जन आंदोलनों का नेतृत्व करते थे।