समृद्धि और धन की देवी मां अन्नपूर्णा के प्रति हमारी गहरी श्रद्धा है : PM मोदी
पीएम मोदी ने मंगलवार को गुजरात में श्री अन्नपूर्णाधाम ट्रस्ट के छात्रावास और शिक्षा परिसर का उद्घाटन किया। कार्यक्रम के दौरान पीएम ने जनसहायक ट्रस्ट के हीरामनी आरोग्यधाम का भूमिपूजन भी किया। छात्रावास और शिक्षा परिसर में 600 छात्रों के रहने व भोजन आदि की सुविधा के लिए 150 कमरे हैं। अन्य सुविधाओं में जीपीएससी, यूपीएससी परीक्षा के लिए प्रशिक्षण केंद्र, ई-लाइब्रेरी, सम्मेलन कक्ष, खेल कक्ष, टीवी कक्ष, छात्रों के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं आदि शामिल हैं।
हीरामनी आरोग्य धाम को विकसित करेगा जनसहायक ट्रस्ट
जनसहायक ट्रस्ट हीरामनी आरोग्य धाम को विकसित करेगा। इसमें एक बार में 14 व्यक्तियों के डायलिसिस की सुविधा, 24 घंटे रक्त-आपूर्ति की सुविधा के साथ ब्लड बैंक, चौबीसों घंटे संचालन में रहने वाला मेडिकल स्टोर, आधुनिक परीक्षण प्रयोगशाला और स्वास्थ्य जांच के लिए शीर्ष श्रेणी के उपकरण सहित नवीनतम चिकित्सा सुविधाएं होंगी। यह आयुर्वेद, होम्योपैथी, एक्यूपंक्चर, योग चिकित्सा आदि के लिए आधुनिक सुविधाओं वाला एक डे-केयर सेंटर होगा। यहां प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण, तकनीशियन प्रशिक्षण और डॉक्टर प्रशिक्षण की सुविधाएं भी उपलब्ध होंगी।
धन की देवी मां अन्नपूर्णा के प्रति गहरी श्रद्धा
कार्यक्रम के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि मां अन्नपूर्णा के इस पावन धाम में आस्था, आद्यात्म और सामाजिक दायित्वों से जुड़े बड़े अनुष्ठानों से जुड़ने का मुझे अवसर मिलता रहता है। मां के आशीर्वाद से मुझे हर बार किसी न किसी तरह से आपके बीच रहने का मौका मिला है।
कनाडा से काशी वापस लेकर आए मां अन्नपूर्णा की मूर्ति
उन्होंने कहा कि समृद्धि और धनधान्य की देवी मां अन्नपूर्णा के प्रति हमारी अगाध आस्था रही है। पाटीदार समाज तो धरती माता से सीधे जुड़ा रहा है। मां के प्रति इस अगाध श्रद्धा के चलते ही कुछ महीने पहले मां अन्नपूर्णा की मूर्ति को हम कनाडा से काशी वापस ले आए हैं।
दशकों पहले काशी से चुराकर विदेश में पहुंचा दी गई थी मां अन्नपूर्णा की मूर्ति
प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षा, पोषण और आरोग्य के क्षेत्र में गुजरात का स्वभाव रहा है कि जिसकी जितनी ताकत हर समाज कुछ न कुछ सामाजिक दायित्व निभाता है। उसमें पाटीदार समाज भी कभी पीछे नहीं रहता है। उन्होंने कहा कि मां अन्नपूर्णा माता की इस मूर्ति को दशकों पहले काशी से चुराकर विदेश में पहुंचा दिया गया था। अपनी संस्कृति के ऐसे दर्जनों प्रतीकों को बीते सात-आठ साल में विदेशों से वापस लाया जा चुका है।