सम्पादकीय

सीता का वनवास कब तक ?

           प्रीति सुमन

“ये त्वया कीर्तिता दोषा वने वस्तत्यतां प्रति।
गुणानित्येव तान विद्धि तव स्नेहपुरस्कृता ।।”
( वा. रा. अयो. का. सर्ग-29, श्लो-2 )

जब राम सीता को साथ वन जाने से रोकते हैं एवं वनवास में आनेवाली समस्याओं से अवगत करवाते हैं तब यह श्लोक कह माँ सीता अपने सतीत्व, अपने पत्नी धर्म व अपने सदविचारों से अवगत करवाते हुए राम से कहती हैं “हे प्रभु, वनगमन की सारी बाधाएँ, सारी समस्याएं, सारे दोष आपके स्नेह से गुण में परिवर्तित हो जाएंगे, अतः हे स्वामी मुझे साथ चलने से न रोकें।” इस श्लोक को कहती माँ सीता ने कभी सोचा भी न होगा कि उनका सम्पूर्ण जीवन ही वनवास में तब्दील हो जायेगा। वही कर्तव्यनिष्ठता जिसके लिए उनको जगत सर्वदा शीश नवाता है, वही उनके दुबारा वनगमन का महत्वपूर्ण कारण बन गया।प्रथम वनवास में ही उनके दूसरे वनवास की भूमिका बन चुकी थी।

“नारि हेतु सुनी जग अपवादा, रामचंद्र हिय भयो विषादा,
भयो गर्भ मिति सात की, चैत द्वादशी पाय,
लोक लाज लखि लखन संग, सीतहि वन पहुँचाये।

राजा राम लोक निंदा के दुष्प्रभाव वश सीता का त्याग करते हैं। भावविह्वल लक्ष्मण अधीर होकर भी बड़े भाई का कहा नही टाल पाते और माँ सीता को वन में छोड़ आते हैं। सीता अनेक कष्टों को सहकर अपने दोनों पुत्रों लव-कुश का पालन पोषण करती हैं और उन्हें महायोद्धा बनाने में सफल होती हैं। यह तो त्रेता युग की कथा हुई। हम आज इस युग के परिपेक्ष्य में माँ सीता की अवस्था पर विचार करने की कोशिश करेंगे।

माँ सीता की जन्मस्थली कहाँ है? नेपाल ? या भारत ?

इस देश के अनेक युवा इस प्रश्न का उत्तर नही जानते कि हमारे भारत के पास ही यह सुनहरा गौरव प्राप्त है।नेपाल से सटे बिहार के उत्तरी भाग में सीतामढ़ी नाम की एक पावन नगरी है जो आज भी माँ सीता के उपेक्षा की कथा कहती है। धार्मिक दृष्टिकोण से यह वह पवित्र स्थल है जहाँ हल चलाते हुए मिथिला के राजा जनक को सीता प्राप्त हुई थी। चाहे माँ सीता के पिता का महल कहीं भी हो परंतु वह स्थान, वह मिट्टी, वह पुण्यधरा जहाँ उनका अवतरण हुआ, अपने आप में बहुत अधिक महत्व रखता है।

जहाँ आज देश में राम जन्मभूमि, राम मंदिर निर्माण व हिंदुत्व के विकास की कथा लिखी जा रही है वहीं अनेक सरकारी योजनाओं एवं वायदों के बावजूद भी यह सीता जन्मभूमि ( सीतामढ़ी) अलग-थलग पड़ी हुई है। जहाँ आध्यात्मिक रूप से अयोध्या पूरे विश्व में अपना परचम लहरा रहा है, वहीं सीतामढ़ी अपने अस्तित्व तक भी नही पहुँच पा रही। सम्पूर्ण भारतवर्ष इस प्रकार का व्यवहार कर रहा है कि जैसे आज भी माँ सीता वनवास में ही हैं और राजा राम अकेले अपनी राजगद्दी पर आसीन हैं। सीता जी की जन्मकथा अपने अविकसित, अवरुद्ध एवं उपेक्षित गले से चीख-चीख कर दुनियाँ के सामने रखने वाली यह पावनभूमि सीतामढ़ी पर्यटन के दृष्टिकोण से भी अतिमहत्वपूर्ण स्थान रखती है। गरीबी व अशिक्षा की मार झेलता यह सम्पूर्ण क्षेत्र, यदि यहाँ पर्यटन का समुचित विकास हुआ होता तो आज विश्वपटल पर चमक रहा होता। माँ सीता त्रेता युग से लेकर आजतक उसी प्रकार उपेक्षिता बनी हुई हैं और समाज उसी प्रकार जिस प्रकार अयोध्यावासी थे, किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा है।

प्रीति सुमन
कवयित्री, नाटककार, निर्देशिका, शोधार्थी