दो-दो हिन्दुस्तान
लाज तिरंगें की रहे, बस इतना अरमान ।
मरते दम तक मैं रखूँ, दिल में हिन्दुस्तान ।।
बच पाए कैसे भला, अपना हिन्दुस्तान ।
बेच रहे हैं खेत को, आये रोज किसान ।।
आधा भूखा है मरे, आधा ले पकवान ।
एक देश में देखिये, दो-दो हिन्दुस्तान ।।
सरहद पर जांबाज़ जब, जागे सारी रात ।
सो पाते हम चैन से, रह अपनों के साथ ।।
हम भारत के वीर हैं, एक हमारा राग ।
नफरत गैरत से हमें, जायज से अनुराग ।।
खा इसका, गाये उसे, ये कैसे इंसान ।
रहते भारत में मगर, अंदर पाकिस्तान ।।
भारत माता रो रही, लिए ह्रदय में पीर ।
पैदा क्यों होते नहीं, भगत सिंह से वीर ।।
भारत माता के रहा, मन में यही मलाल ।
लाल बहादुर-सा नहीं, जनमा फिर से लाल ।।
मैंने उनको भेंट की, दिवाली और ईद ।
जान देश के नाम जो, करके हुए शहीद ।।
घोटालों के घाट पर, नेता करे किलोल ।
लिए तिरंगा हाथ में, कुर्सी की जय बोल ।।
आओ मेरे साथियों, कर लें उनका ध्यान ।
शान देश की जो बनें, देकर अपनी जान ।।
— सत्यवान ‘सौरभ’,