पटनाबिहारराज्य

यह शहर हर साल डूबता है पर यहाँ के नेताओं और अफसरों का शर्म नहीं डूबता, दुनिया का एकमात्र ऐसा शहर जहाँ बाढ़ नदी से नहीं नाले के पानी से आता है

मधुप मणि “पिक्कू”

30 वर्षों से इस शहर पर एक ही दल का राज है. कहने में कोई गुरेज नहीं कि यह शहर प्रत्येक वर्ष बाढ़ से नहीं नाले के पानी से हीं डूब जाता है. जी हाँ हम बात कर रहे हैं बिहार के ऐतिहासिक राजधानी पटना की.
निम्न और निम्न मध्यम वर्गीय परिवार जिन्हें सरकार की ओर से न कोई सब्सिडी मिलती है और न हीं इन तक कोई बाढ़ राहत पहुँच पाती है, वो हर साल अपने घर के बहुत मेहनत से ख़रीदे लाखों के सामान को अपनी आँखों के सामने डूबते और बर्बाद होते देखते हैं.
पूरा शहर हर साल डूबता है, पर यहाँ के नेताओं और अफसरों का शर्म कभी नहीं डूबता. शायद पटना दुनिया का ऐसा पहला शहर होगा जहाँ बाढ़ नदी के पानी से नहीं बल्कि नाले के पानी से आता है. नालों की सफाई और जलनिकासी के लिए प्रतिवर्ष करोड़ो रूपये खर्च होते हैं पर कहाँ जाते हैं ये पता नहीं.
प्राकृतिक आपदा बताकर पल्ला झाड़ने वालों यदि यह प्राकृतिक आपदा हीं है तो आपकी तैयारी क्या थी ? आपने बंगाल के सीएम से बगावत सीखा, दिल्ली के सीएम से जिद्द और लालू प्रसाद से अहंकार. आपने उड़ीसा के सीएम से क्यों नहीं आपदा से निपटने की तरकीब सीखी ?

यहाँ आपदा सिर्फ लोगों पर नहीं आयी है, आपदा तो सिस्टम में है. जमीन पर जमे पानी को आसमान से नापा जाता है. आसमान में उड़ते उड़नखटोले को दिखाकर सड़े हुए खाना गिराकर आप खानापूर्ति तो कर लेंगे, पर उस भूखे बच्चे की बद्दुआ का क्या करेंगे जो कई घंटे तक जहाज से अपने पैकेट के गिरने का इंतजार करता रहता है.
राहत सामग्री बाँटने के क्रम में उस वक़्त आँखों में आंसू आ गए जब एक बूढी औरत सामने खड़े होकर पानी और दूध बांटने वाले से बुखार की दवा मांगते हुए रो पड़ी. उसका पति बीमार है और उसी पानी में दो दिन से पड़ा है.
अचानक आई बारिश में पटना के महत्वपूर्ण इलाके में दो बुजुर्ग दंपत्ति को परिवार वाले फ़ोन लगाकर जब थक गए तो परिचितों के माध्यम से घर पर संपर्क किया गया. पूरा घर डूबा हुआ था. उनका पालतू कुत्ता पानी में मर चूका था और बदबू इतनी कि वहां एक पल भी खड़ा होना मुश्किल. लोगों ने दुसरे कमरे में प्रवेश किया तो देखा कि दोनों दम्पति बुखार से जूझते हुए बिछावन पर पड़े हैं. बिजली नहीं रहने के कारण मोबाइल भी बंद हो चूका था.

यह कोई गंगा या पुनपुन नदी के पानी से आया बाढ़ नहीं है, पर जब लज्जा पूरी तरह से ख़त्म हो जाती है तो पानी नदी को हो या नाले का क्या फर्क पड़ता है. जरा हैलीकॉप्टर से नीचे उतर कर देखिये और समझिये कि आपकी प्रजा चाहती क्या है ? बंद कमरे में आपदा प्रबंधन की बैठकों का दौर ख़त्म कीजिये. खुद उतरिये और अपने जंग लगे सिस्टम को भी इस तथाकथित बाढ़ में बहा दीजिये. कहीं ऐसा न हो कि दुसरे के कंधे पर चल रही आपकी सत्ता उस कंधे को भी तोड़ कर रख दे.