बुरे समय की आंधियां !- प्रियंका सौरभ
तेज प्रभाकर का ढले, जब आती है शाम !
रहा सिकन्दर का कहाँ, सदा एक सा नाम !!
उगते सूरज को करे, दुनिया सदा सलाम !
नया कलेंडर साल का, लगता जैसे राम !!
तिनका-तिनका उड़ चले, छप्पर का अभिमान !
बुरे समय की आंधियां, तोड़े सभी गुमान !!
तिथियां बदले पल बदले, बदलेंगे सब ढंग !
खो जायेगा एक दिन, सौरभ तन का रंग !!
पाकर भी कुछ ना मिले, होकर जिम्मेवार !
कितना धोखेबाज है, सौरभ ये किरदार !!
प्रेम दिया या दर्द हो, सबका है आभार !
जीवन पथ पर है तभी, मिला मुझे विस्तार !!
हम पत्तों को सींचते, पर जड़ है बीमार !
सौरभ कैसे हो बता, ऐसे वृक्ष सुधार !!
—प्रियंका सौरभ
रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस,
कवयित्री, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार